TDS (Total Dissolved Solids)
Total Dissolved Solids (TDS) वह माप है जो जल में सभी घुले हुए ठोस पदार्थों की कुल मात्रा को दर्शाता है। इसमें खनिज, लवण और अन्य घुले पदार्थ शामिल होते हैं। TDS को आमतौर पर मिलीग्राम प्रति लीटर(mg/l) या पीपीएम (ppm) से मापा जाता है
संकेत: उच्च TDS स्तर यह संकेत कर सकता है कि जल में घुले हुए ठोस पदार्थ अधिक हैं।
TDS के मानक:
- 0-100 मिलीग्राम/लीटर: जल शुद्ध
- 100-500 मिलीग्राम/लीटर: जल सामान्य
- 500-1000 मिलीग्राम/लीटर: जल प्रदूषित
- 1000 से अधिक मिलीग्राम/लीटर: जल अत्यधिक प्रदूषित
यह मानक जल की शुद्धता का माप करने में मदद करते हैं।
जल गुणवत्ता मूल्यांकन में TDS का महत्व
जल गुणवत्ता मूल्यांकन में TDS (कुल घुलित पदार्थ) का महत्व इस प्रकार है:
1. जल की शुद्धता का माप: TDS जल में घुले हुए पदार्थों की मात्रा को मापता है, जो जल की शुद्धता का संकेतक है।
2. जल की स्वास्थ्य संबंधी खतरा: उच्च TDS स्तर जल में हानिकारक पदार्थों की उपस्थिति को दर्शा सकता है, जो स्वास्थ्य के लिए खतरनाक हो सकते हैं।
3. जल की उपयोगिता: TDS स्तर जल की उपयोगिता को निर्धारित करता है, जैसे कि पीने, सिंचाई, उद्योग आदि में।
4. जल स्रोत की पहचान: TDS स्तर जल स्रोत की पहचान करने में मदद करता है, जैसे कि नदी, तालाब, भूमिगत जल आदि।
5. जल शोधन की आवश्यकता: उच्च TDS स्तर जल शोधन की आवश्यकता को दर्शा सकता है।
6. जल प्रदूषण का पता लगाना: TDS स्तर जल प्रदूषण का पता लगाने में मदद करता है।
7. जल गुणवत्ता मानकों का पालन: TDS स्तर जल गुणवत्ता मानकों का पालन करने में मदद करता है।
8. स्वाद और सुगन्ध में परिवर्तन
उच्च TDS स्तर पानी के स्वाद को प्रभावित कर सकता है। उदाहरण के लिए, बहुत अधिक लवण और खनिजों के कारण पानी का स्वाद नमकीन हो सकता है। उच्च TDS पानी की सुगन्ध को भी प्रभावित कर सकता है, जिससे पानी का स्वाद अप्रिय हो सकता है।
TDS (कुल घुलित पदार्थ) के माप के लिए विधियाँ
1. ग्रेविमेट्रिक विधि: इसमें जल का नमूना उबालकर जल को वाष्पित किया जाता है और बचे हुए पदार्थ का वजन किया जाता है।
2. विद्युत अपघटन विधि: इसमें जल का नमूना विद्युत अपघटन सेल में रखा जाता है और टीडीएस का माप किया जाता है।
3. स्पेक्ट्रोफोटोमीटर विधि: इसमें जल का नमूना स्पेक्ट्रोफोटोमीटर में रखा जाता है और टीडीएस का माप किया जाता है।
4. कॉन्डक्टिविटी विधि: इसमें जल का नमूना कॉन्डक्टिविटी मीटर में रखा जाता है और टीडीएस का माप किया जाता है।
5. आईओएन क्रोमेटोग्राफी विधि: इसमें जल का नमूना आईओएन क्रोमेटोग्राफी में रखा जाता है और टीडीएस का माप किया जाता है।
6. टर्बिडिमेट्री विधि: इसमें जल का नमूना टर्बिडिमीटर में रखा जाता है और टीडीएस का माप किया जाता है।
इन विधियों में से कॉन्डक्टिविटी विधि सबसे अधिक प्रयोग में लाई जाती है, क्योंकि यह विधि सरल, सस्ती और तेज है।
1. कंडक्टिविटी मीटर विधि
विधि
इसमें जल का नमूना कॉन्डक्टिविटी मीटर में रखा जाता है और टीडीएस का माप किया जाता है।
लाभ
यह विधि त्वरित परिणाम प्रदान करती है।
आसानी से प्रयोग करने योग्य।
यह उच्च सटीकता प्रदान करती है।
सीमाएँ
मानक सीमाएं-
जल के प्रकार और उनके यथार्थ TDS को सही ढंग से मापने के लिए कंडक्टिविटी से TDS में परिवर्तित करने के लिए मानक गुणांक को सही ढंग से निर्धारित करने की आवश्यकता होती है।
खराब सटीकता -
अत्यधिक उच्च या निम्न TDS स्तर पर कंडक्टिविटी और TDS के बीच का सम्बन्ध सही नहीं हो सकता।
2. वजन विधि / ग्रेविमेट्रिक विधि:
इसमें जल का नमूना उबालकर जल को वाष्पित किया जाता है और बचे हुए पदार्थ का वजन करके TDS मापी जाती है।
लाभ
सटीकता-
यह विधि अत्यधिक सटीक माप प्रदान करती है।
सर्वोत्तम विधि -
ठोस और अवसादी पदार्थों की सही मात्रा प्राप्त होती है।
सीमाएँ
समय-साध्य-
प्रक्रिया समय साध्य होती है और प्रयोगशाला में की जाती है।
विशेष उपकरण की आवश्यकता-
यह विधि विशेष प्रयोगशाला उपकरण और सुविधाओं की आवश्यकता होती है।
3. फिल्टर विधि
विधि
जल के नमूने को एक फिल्टर माध्यम के माध्यम से छानकर ठोस सामग्री को अलग किया जाता है, और फिर ठोस सामग्री का वजन किया जाता है।
लाभ
आसन प्रयोग-
प्रयोगशाला में सरल और आसानी से लागू की जाने वाली विधि।
व्यापक उपयोग-
विभिन्न जल नमूनों के लिए उपयोगी।
सीमाएँ
सटीकता की कमी-कुछ छोटे घुलनशील पदार्थों को फिल्टरिंग द्वारा हटाया नहीं जा सकता, जिससे सटीकता प्रभावित हो सकती है।
संग्रहण की समस्या -ठोस पदार्थों को सही ढंग से संग्रहित करना और उनका वजन करना चुनौतीपूर्ण हो सकता है।
4. डिस्टिलेशन विधि
विधि
जल को उबालकर वाष्पित किया जाता है और वाष्प को संकेन्द्रित करके ठोस पदार्थों को अलग किया जाता है।
लाभ
उच्च सटीकता-उच्च सटीकता के साथ TDS को मापने में सक्षम।
विश्लेषणात्मक-जल में घुलने वाले सभी ठोस पदार्थों का सही माप प्रदान करता है।
सीमाएँ
समय-साध्य-प्रक्रिया समय-साध्य और ऊर्जा-उपभोग करने वाली होती है।
विधि की जटिलता-प्रयोगशाला में जटिलता और विशेष उपकरण की आवश्यकता।
5. टर्बोडिटी मीटर विधि
विधि
इसमें जल के नमूने में टर्बिडिटी मीटर रखा जाता है और टीडीएस का माप किया जाता है।
लाभ
कण विश्लेषण-कणों की उपस्थिति को मापने में सहायक।
तेजी से परिणाम -त्वरित परिणाम प्रदान करता है।
सीमाएँ
सीमित उपयोग - केवल ठोस कणों की उपस्थिति को मापता है, पूरी तरह से TDS की सटीक माप नहीं करता।
कण और घुलनशील पदार्थ-यह विधि केवल ठोस कणों को मापती है न कि घुलनशील पदार्थों को।
6. फोटोग्राफिक विधियाँ
इसमें रंगमापी तकनीकें और विश्लेषणात्मक फोटोमेट्री का उपयोग करके घुलनशील पदार्थों की पहचान की जाती है।
लाभ
रंग और प्रकाशिकी के आधार पर सटीकता में मदद करती है।
सीमाएँ
विशेष यन्त्र-विशेष यन्त्र और मानक रंग समाधान की आवश्यकता।
संवेदनशीलता-विधि की संवेदनशीलता और सटीकता सीमित हो सकती है।
इन विधियों का चयन जल के प्रकार, उपलब्ध संसाधनों और सटीकता की आवश्यकता के आधार पर किया जाता है। हर विधि के लाभ और सीमाएँ हैं और सबसे उपयुक्त विधि को विशिष्ट परिस्थितियों और आवश्यकताओं के अनुसार चुना जाना चाहिए।
TDS के उच्च स्तर के संकेत
1. स्वाद में बदलाव
उच्च TDS वाले जल में अधिक लवण और खनिजों की उपस्थिति के कारण जल का स्वाद नमकीन या कड़वा हो सकता है।
2. जल की रंगत और गन्ध
उच्च TDS जल को धुँधला कर सकता है, जिससे इसका रंग और पारदर्शिता प्रभावित होती है। उच्च TDS के कारण जल में असामान्य गब्ध उत्पन्न हो सकती है, जो इसकी गुणवत्ता को प्रभावित करती है।
3. स्वास्थ्य समस्याएँ
उच्च TDS जल के सेवन से पाचन समस्याएँ और पेट में दर्द हो सकता है। लम्बे समय तक उच्च TDS वाले पानी का सेवन गुर्दे की समस्याओं को जन्म दे सकता है, विशेष रूप से यदि उसमें हानिकारक खनिज और रसायन शामिल हो।
4. सप्लाई सिस्टम में समस्याएँ
पाइपलाइन और जल वितरण प्रणालियों में अवसादन और जमाव हो सकता है, जिससे पाइपों का जीवनकाल कम हो सकता है।
TDS के उच्च स्तर के पारिस्थितिकी तन्त्र पर प्रभाव
1. पानी के जीवों पर प्रभाव
ऑक्सीजन की कमी
उच्च TDS के कारण जल के ऑक्सीजन अवशोषण की क्षमता कम हो सकती है , जिससे जलीय जीवन को ऑक्सीजन की कमी का सामना करना पड़ता है।
जलीय पारिस्थितिकी तन्त्र का असन्तुलन
उच्च TDS जल में खनिज और लवणों की अधिकता से जलीय पारिस्थितिकी तन्त्र में असन्तुलन हो सकता है, जिससे जल जीवों की प्रजातियाँ हो सकती है।
2. पौधों पर प्रभाव
पोषक तत्वों की अवशोषण में कमी
उच्च TDS जल के कारण पौधों की जड़ों द्वारा पोषक तत्वों का अवशोषण कठिन हो सकता है, जिससे उनकी वृद्धि और विकास प्रभावित हो सकता है।
लवण की वृद्धि-
जल में उच्च लवण सामग्री से भूमि की संरचना और फसल की पैदावार पर नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है।
3. भूमि की गुणवत्ता पर प्रभाव
मृदा की क्षारीयता में वृद्धि
उच्च TDS वाले जल के उपयोग से भूमि की क्षारीयता बढ़ सकती है, जिससे मिट्टी की उर्वरता में कमी हो सकती है।
भूमि की अवसादन-
भूमि पर उच्च TDS वाले जल का प्रभाव अवसादन और जमी हुई परतों के रूप में देखा जा सकता है।
4. पारिस्थितिकी तन्त्र का असन्तुलन
पारिस्थितिकी तन्त्र की विविधता
उच्च TDS से पारिस्थितिकी तन्त्र की विविधता प्रभावित हो सकती है, क्योंकि कुछ जलीय प्रजातियाँ उच्च खनिज और लवण स्तर को सहन नहीं कर पाती हैं।
पारिस्थितिकी तन्त्र के कार्य-जल के उच्च TDS स्तर से पारिस्थितिकी तन्त्र के कार्य और पारिस्थितिक तन्त्र की सन्तुलन को प्रभावित किया जा सकता है।