बीमा योग्य हित से आशय, परिभाषा, शर्ते और जीवन बीमा में बीमा योग्य हित सम्बन्धी नियम (Meaning, Definition, Condition of Insurable Interest and Rules regarding insurable interest in life insurance)

 सामग्री तालिका

  • बीमा योग्य हित से आशय एवं परिभाषा (Meaning and Definition of Insurable Interest)

  • बीमा योग्य हित की शर्त (Conditions of Insurable Interest)

  • जीवन बीमा में बीमा योग्य हित सम्बन्धी नियम (Rules regarding insurable interest in life insurance)


बीमा योग्य हित से आशय एवं परिभाषा (Meaning and Definition of Insurable Interest)

बीमा योग्य हित से आशय यह है कि बीमा कराने वाले को, बीमित वस्तु की सुरक्षा से लाभ एवं बीमित वस्तु की हानि से बीमा कराने वाले को हानि होनी चाहिए।" दूसरे शब्दों में, बीमा योग्य हित किसी वस्तु में निहित ऐसे आर्थिक हित को कहते हैं जिसकी सुरक्षा से आर्थिक लाभ एवं जिसको हानि से आर्थिक हानि हो। यदि किसी वस्तु के रहने से आर्थिक लाभ हो परन्तु न रहने से आर्थिक नुकसान न हो तो वह बीमा योग्य हित नहीं कहलायेगा।

बीमा योग्य हित का बीमा अनुबन्ध में विशेष महत्व है। इसकी विद्यमानता से ही कोई बीमा अनुबन्ध कानून की दृष्टि में प्रवर्तनीय हो सकता है। यदि किसी बीमा संविदा में बीमा योग्य हित न हो तो वह बीमा संविदा जुए की भाँति होगी और उसका कोई वैधानिक मूल्य न होगा।

बीमा योग्य हित से तात्पर्य बीमा की विषय-वस्तु में बीमाकृत व्यक्ति के उस वैधानिक हित से है जिसके कारण बोमा की विषय-वस्तु को सुरक्षा के वित्तीय लाभ और उसकी हानि या नष्ट होने से बीमा करने वाले को हानि हो। 


रीगल एवं मिलर के अनुसार, "बीमा योग्य हित एक ऐसा हित है जिसमें धारक को बीमित हित की घटना के घटने पर आर्थिक हानि होती है।" 

मेग्लीवरी के अनुसार, "किसी घटना के घटित होने पर जिससे कि बीमित राशि देय होती है, बौमादार ऐसी स्थिति में हो जिसके निकटतम परिणामस्वरूप उसे हानि होती है या उसके वैधानिक अधिकार का हनन होता है, या उस पर कानूनी दायित्व आता हो तो उस घटना में बीमादार का बीमा योग्य हित उतना ही होता है जितना कि उसकी क्षति हुई हो या जितना कि बीमादार पर दायित्व आया हो।”


बीमा योग्य हित की शर्त (Conditions of Insurable Interest)

सभी प्रकार की बीमा संविदाओं में बीमा हित प्रमाणित करने के लिए निम्नलिखित तीन शर्तों की पूर्ति होनी चाहिए,


(1) बीमा की विषय-वस्तु (Subject-matter) 

बीमा की विषय-वस्तु निश्चित होनी चाहिए, जैसे- जीवन, सम्पत्ति, भाड़ा दायित्व, गारण्टी आदि।


(2) हित लाभ

जिस आपदा या घटना के प्रति बीमा कराया गया हो उसके घटित होने से बीमादार को हानि पहुँचने तथा न घटित होने पर लाभान्वित होने की सम्भावना होनी चाहिए।


(3) वैधानिक सम्बन्ध

बीमित विषय के साथ बीमादार का एक ऐसा कानूनी सम्बन्ध होना चाहिए कि उसकी सुरक्षा से उसे लाभ हो तथा उसकी हानि या क्षति से उस पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता हो।


अगर उक्त शर्तों की पूर्ति न होती हो तब बीमित विषय-वस्तु में बीमादार का बीमा योग्य हित नहीं हो सकता है।


जीवन बीमा में बीमा योग्य हित सम्बन्धी नियम

बीमा योग्य हित कब, क्यूँ और कहाँ...? (Insurable interest when, why and where.....?)



जीवन बीमा कराते समय बीमा योग्य हित होना जरूरी है। क्योंकि बीमित मनुष्य की मृत्यु की दशा में बीमे का रुपया उसके उत्तराधिकारी को ही मिलेगा। जीवन बीमा के सम्बन्ध में बीमा योग्य हित का विभाजन निम्न प्रकार किया जा सकता है-



(A) स्वयं के जीवन में बीमा योग्य हित 

(B) अन्यों के जीवन में बीमा योग्य हित 

(I) प्रमाण आवश्यक नहीं है

(II) प्रमाण आवश्यक है

(i) व्यापारिक सम्बन्ध

(ii) पारिवारिक सम्बन्ध


(A) स्वयं अपने जीवन में बीमा योग्य हित 

प्रत्येक व्यक्ति का अपने स्वयं के जीवन में असीमित बीमा योग्य हित होता है। बीमित अथवा उसके आश्रितों को उसकी मृत्यु से होने वाली हानि को धन में नहीं मापा जा सकता है इसलिए अपने स्वयं का जीवन बीमा या व्यक्तिगत दुर्घटना बीमा में बीमे की राशि की कोई सीमा नहीं होती। व्यवहार में बीमा का प्रीमियम देने की क्षमता बीमे की कुल राशि को सीमित करती है। बीमा की राशि बीमापत्र धारक की स्थिति और आमदनी पर निर्भर करती है। बीमा का प्रीमियम तीसरे पक्षकार द्वारा भी दिया जा सकता है बशर्ते कि उसमें सट्टे का विचार नहीं हो।


(B) अन्यों के जीवन में बीमा योग्य हित 

दूसरों के जीवन में दो प्रकार का बीमा योग्य हित होता है (1) जहाँ प्रमाण की आवश्यकता नहीं होती, और (2) जहाँ प्रमाण की आवश्यकता होती है।


(I) प्रमाण की आवश्यकता नहीं है 

ऐसे केवल दो मामले हैं जिनमें बीमा योग्य हित की विद्यमानता को कानूनी रूप से कल्पना की जा सकती है और उसे प्रमाणित करने की आवश्यकता नहीं होती।


(i) अपने पति के जीवन में पत्नी का बीमा योग्य हित होता है।

(ii) अपनी पत्नी के जीवन में पति का बीमा योग्य हित होता है।


(II) प्रमाण की आवश्यकता है

निम्नलिखित मामलों में बीमा योग्य हित को प्रमाणित करना पड़ता है- 


(i) व्यापारिक सम्बन्ध 

बीमापत्र धारक का व्यापार अथवा संविदात्मक सम्बन्ध के कारण बीमित के जीवन में बीमा योग्य हित हो सकता है। इस मामले में, बीमा योग्य हित की राशि निहित जोखिम की राशि के बराबर होती है। जैसा कि निम्न से स्पष्ट है


(a) एक नियोक्ता का अपने विशिष्ट कर्मचारी के जीवन में बीमा योग्य हित होता है

एक विशिष्ट व्यक्ति की मृत्यु पर नियोक्ता को न केवल उसकी सेवाओं से वंचित होना पड़ेगा बल्कि ऐसे कर्मचारी की पुनस्र्स्थापना करने वाले व्यक्ति की नियुक्ति और प्रशिक्षण में आर्थिक कठिनाइयाँ उठानी पड़ेंगी। इसके अतिरिक्त मृत कर्मचारी के आश्रितों को बकाया धनराशि का भुगतान करना पड़ेगा। इसलिए व्यापार का इस सीमा तक विशिष्ट कर्मचारी के जीवन में बीमा योग्य हित होता है।


(b) एक जमानतदार (गारेंटी देने वाला) का अपने जमानती के जीवन में बीमा योग्य हित होता है-  

यदि जमानती की मृत्यु हो जाती है तो बकाया ऋण तथा उस पर ब्याज का भुगतान करने का उत्तरदायित्व जमानतदार का होता है। इस स्थिति में बीमा योग्य हित बकाया ऋण, उस पर ब्याज और दिये गये प्रीमियम के कुल योग की राशि तक सीमित होता है।


(c) एक ऋणदाता का अपने ऋणी के जीवन में बीमा योग्य हित होता है- 

ऋण के पुनर्भुगतान के पूर्व यदि ऋणी की मृत्यु हो जाती है तो ऋणदाता को हानि होती है। एक ऋणदाता की हानि की अधिकतम राशि, बकाया ऋण की राशि और उस पर ब्याज तथा दिये गये प्रीमियम की राशि हो सकती है। इसलिए बीमा योग्य हित की अधिकतम राशि यही कुल राशि होती है।


(d) एक साझी का प्रत्येक साझेदार के जीवन में बीमा योग्य हित होता है

फर्म अपने सभी साझेदारो का संयुक्त रूप से या अलग-अलग रूप से जीवन बीमा कराती है। किसी भी साझेदार की मृत्यु पर फर्म को मृत साझी की पूँजी, ख्याति, लाभ तथा संचालिों के हिस्से, आदि का भुगतान करना पड़ता है और इस सीमा तक फर्म का प्रत्येक साझेदार के जीवन में बीमा योग्य हित होता है। इसी प्रकार, सभी साझेदारों का प्रत्येक साझी के जीवन में बीमा योग्य हित होता है।


(ii) पारिवारिक सम्बन्ध-

यदि बीमापत्र धारकों और बीमित जीवन के मध्य आगोप्य हित (Pecuniary Interest) विद्यमान हो तो पारिवारिक सम्बन्ध के कारण बीमा योग्य हित उत्पन्न हो सकता है। प्रायः सम्बन्धियों का जीवन बीमा कराते समय यदि यह प्रमाणित कर दिया जाता है कि बीमा कराने वाले व्यक्ति का उस व्यक्ति से ऐसा सम्बन्ध है कि वह उस पर आश्रित है और अपने भरण-पोषण के लिए उस पर वैधानिक रूप से बाध्य है तो आगोप्य हित के मौजूद रहने की बात मानी जा सकती है। 

पारिवारिक सम्बन्ध के आधार पर बीमा योग्य हित के कुछ उदाहरण निम्न है-


(a) यदि पिता अपने पुत्र पर पूर्णतया आश्रित हो तो पिता का अपने पुत्र के जीवन में बीमा योग्य हित होता है 


(b) यदि पुत्र पिता पर आश्रित है तो पुत्र का पिता के जीवन में बीमा योग्य हित होता है


(c) एक अवैधानिक रूप से विवाहित स्त्री यदि अपने पति पर पूर्णरूप से आश्रित हो तो पति पर बीमा योग्य हित रखती है। 


Tags