बीमा अनुबंध का अर्थ , बीमा अनुबंध के तत्व , बीमा अनुबंध के प्रकार

 



विषय वस्तु

बीमा अनुबंध का अर्थ

बीमा अनुबंध के तत्व

बीमा अनुबंध के प्रकार



बीमा अनुबंध

(INSURANCE CONTRACT)


सामान्य अनुबन्धों की तरह ही बीमा भी एक संविदा है जो बीमा कराने वाले तथा बीमा कम्पनी के मध्य में हुए पारस्परिक अनुबन्ध का परिणाम होता है। इस अनुबन्ध के अधीन बीमा कराने वाले द्वारा प्रीमियम चुकाने के वचन के बहते बीमा कम्पनी बीमित जोखिमों के विरुद्ध क्षतिपूर्ति करने का वचन देती है। चूँकि बीमा का आधार अनुबन्ध होता है इसलिए एक बीमा अनुबन्ध में ही सामान्य अनुबन्ध की भाँति समस्त लक्षणों का पाया जाना परम आवश्यक है। इसके अतिरिक्त कुछ अन्य विशेषताएँ या लक्षण, जो सामान्य अनुबन्ध में नहीं होते, बीमा अनुबन्ध के लिए आवश्यक है। अतः बीमा संविदा के सिद्धान्तों, लक्षणों या शर्तों को निम्नलिखित दो वर्गों में रखा जा सकता है-


(A) सामान्य तत्व,

(B) विशेष तत्व 


(A) सामान्य तत्व (GENERAL ELEMENTS)


भारतीय अनुबन्ध अधिनियम, 1872 की धारा 10 के अनुसार, उन्हीं समझौतों को अनुबन्ध कहते हैं जो अनुबन्ध के योग्य पक्षकारों के मध्य स्वतन्त्र सहमति से वैध प्रतिफल के लिये वैध उद्देश्य से हुआ है तथा जो स्पष्ट रूप में व्यर्थ घोषित न हो। इस प्रकार बीमा अनुबन्ध में निम्नलिखित तत्वों का होना आवश्यक होता है


(1) वैध उत्तरदायित्व का निर्माण करने की इच्छा 

कई अनौपचारिक और सामाजिक समझौतों में वैध परिणामों का भी कोई विचार नहीं रहता लेकिन वैध अनुबन्ध में ऐसी भावना होनी चाहिए। इस बिन्दु से बीमा में कोई कठिनाई उत्पन्न नहीं होती, जहाँ यह प्रायः बहुत स्पष्ट होता है कि बीमे के पक्षधर यह चाहते हैं कि उनके मध्य समझौता वैधानिक रूप से बाध्य हो।


(2) प्रस्ताव एवं स्वीकृति (Proposal and Acceptance)-

बीमा अनुबन्ध के लिए यह आवश्यक है कि एक पक्ष को प्रस्ताव रखना चाहिए और दूसरे पक्ष को वह प्रस्ताव स्वीकार करना चाहिए। प्रायः बीमा संविदा में प्रस्ताव बीमा कराने वाले द्वारा रखा जाता है और स्वीकृति बीमा कम्पनी द्वारा दी जाती है।


(3) स्वतन्त्र सहमति (Free Consent)- 

सहमति स्वतन्त्र तभी कही जायेगी जब वह निम्नलिखित के बिना प्राप्त की गयी हो- (क) उत्पीड़न, (ख) अनुचित प्रभाव, (ग) कपट, (घ) भ्रांति वर्णन, और (ङ) गलती।


(4) वैधानिक प्रतिफल (Lawful Consideration) अनुबन्ध वैधानिक प्रतिफल से रहित नहीं होना चाहिए तथा जिस उद्देश्य से अनुबन्ध किया गया है, वह भी वैधानिक होना चाहिए।


(5) वैध उद्देश्य (Lawful Object)- 

सहमति किसी वैध उद्देश्य को लेकर होनी चाहिए। जनहित के विरुद्ध या देश में प्रचलित नियमों के विरुद्ध कोई भी कार्य करने के उद्देश्य को वैध उद्देश्य नहीं कहा जा सकता।


(6) संविदात्मक सक्षमता (Contractual Competence) 

दोनों पक्षकार अनुबन्ध करने की योग्यता रखने वाले होने चाहिए। नाबालिग, पागल, शत्रु देश के नागरिक आदि, व्यक्ति प्संविदा करने के अयोग्य माने जाते हैं। 


(7) ठहराव स्पष्ट रूप से व्यर्थ घोषित नहीं हो (Agreement not hereby Expressly Declared to be Void)

भारतीय अनुबन्ध अधिनियम की धारा 26 से 30 और 56 के अन्तर्गत कुछ ठहरावों को स्पष्ट रूप से व्यर्थ घोषित किया गया है अतः ठहराव ऐसा न हो जो कानूनी रूप से शुरू से ही अवैध घोषित कर दिया गया हो।


(8) अनुबन्ध का लिखित होना (Contract to be in Writing)- 

बीमा अनुबन्ध लिखित में ही होना चाहिए, क्योंकि भारत में मौखिक अनुबन्धों को वैधानिकता प्राप्त नहीं है।


(B) विशेष तत्व (SPECIAL ELEMENTS)


साधारण संविदा के उपर्युक्त तत्वों के साथ-साथ कानून की दृष्टि में मान्य होने के लिए बीमा अनुबन्ध में निम्नलिखित विशेष तत्वों का होना आवश्यक है-


  • बीमा योग्यहित का सिद्धांत (principle of insurable interest)
  • परम सद् विश्वास का सिद्धांत(principle of utmost good faith)
  • क्षतिपूर्ति का सिद्धांत ( principle of indemnity)
  • स्थान ग्रहण या प्रशासन का सिद्धांत (principle of sabrogation)
  • अंशदान या अभिदाय का सिद्धांत (principle of contribution)
  • क्षति के अल्पीकरण का सिद्धांत (principle of mitigating the loss)
  • आसन्न कारण सिद्धांत (principle or doctrine of proximate cause)



बीमा अनुबन्धों के प्रकार (TYPES OF INSURANCE CONTRACTS)


बीमा अनुबन्धों को निम्न दो भागों में बाँटा जा सकता है-


(1) जीवन बीमा अनुबन्ध (Life Insurance Contracts

जीवन बीमा एक व्यक्तिगत प्रसंविदा है। इस प्रसंविदा में क्षतिपूर्ति का सिद्धान्त लागू नहीं होता क्योंकि किसी मनुष्य के जीवन का वित्तीय मूल्यांकन नहीं किया जा सकता। इन संविदाओं में बीमादाता बीमादार को यह आश्वासन देता है कि उसकी मृत्यु होने पर या एक निश्चित अवधि व्यतीत कर लेने पर बीमित धनराशि दे दी जावेगी। अर्थात् बीमाकर्ता की मृत्यु होने अथवा नहीं होने दोनों ही दशाओं में धन प्राप्त होता है।


(2) क्षतिपूर्ति बीमा अनुबन्ध (Contracts of Indemnity Insurance)- 

जीवन बीमा एवं व्यक्तिगत दुर्घटना बीमा प्रसंविदाओं के अलावा शेष सभी बीमा संविदायें क्षतिपूर्ति संविदायें होती हैं। क्षतिपूर्ति सिद्धान्त का उद्देश्य बीमित व्यक्ति को हानि होने के बाद उसी वित्तीय दशा में रख देना जिस दशा में वह बीमित घटना के घटित होने के तुरन्त पूर्व था। इस प्रकार की संविदाओं में बीमा कम्पनी किसी निश्चित दुर्घटना या जोखिम से होने वाली वास्तविक हानि की क्षतिपूर्ति करने का आश्वासन देती है। हानि की दशा में बीमादार को वास्तविक हानि या बीमित धनराशि, दोनों में से जो भी कम हो, की क्षतिपूर्ति होगी किन्तु अधिक की नहीं। क्षतिपूर्ति बीमा अनुबन्धों में अग्नि बीमा, सामुद्रिक बीमा, वैधानिक दायित्व बीमा, विश्वसनीयता गारण्टी बीमा, इन्जीनियरिंग बीमा आदि सम्मिलित हैं।









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