प्रतिदर्शन के प्रकार /विधियां/ तकनीक (Types/ Methods/ Techniques of Sampling)
प्रतिदर्शन को मुख्य रूप से निम्नलिखित भागों में बांटा जा सकता है।
यदृच्छिक प्रतिदर्शन (Random Sampling):
एक प्रतिदर्श दैव विधि से उस समय कहा जाता है, जब प्रत्येक संभव प्रतिदर्श को चुने जाने का समान अवसर हो।
पार्टन (Parten) के शब्दों में-“दैव प्रतिदर्श एक ऐसा रूप है, जिसको चुनने की विधि के रूप में प्रयोग करने से यह निश्चित हो जाता है कि समग्रे की प्रत्येक इकाई अथवा तत्त्व को चुने जाने का समान अवसर हो।’
1) सरल दैव प्रतिदर्श रीति (Simple Random Sampling)
सरल दैव प्रतिदर्श रीति से प्रतिदर्श लेने के निम्नलिखित तरीके हैं
(Following are the methods of taking samples by random sampling):
i) लॉटरी रीति (Lottery method):
यह रीति सबसे सरल तथा प्रचलित है। इसके अनुसार समग्र की सभी इकाइयों की पर्चियाँ अथवा गोलियाँ बनाकर किसी निष्पक्ष व्यक्ति द्वारा या स्वयं आँखें बंद करके उतनी पर्चियाँ या गोलियाँ उठा ली जाती हैं, जितनी इकाइयाँ प्रतिदर्श में शामिल करनी होती हैं। प्रतिदर्श की इकाइयों के निष्पक्ष चुनाव के लिए यह आवश्यक है कि सभी पर्चियाँ या गोलियाँ एक-सी बनाई जाएँ, उनका आकार, रूप व रंग एकसमान हो तथा उन्हें छाँटने से पूर्व खूब हिला-मिला लिया जाए।
7) गुच्छ प्रतिदर्शन (Cluster sampling)
इस विधि का उपयोग वहां किया जाता है जहां जनसंख्या का आकार बहुत बड़ा होता है। इस विधि में एक सजातीय जनसंख्या को छोटे विषम समूहों में विभाजित किया जाता है और फिर इन विषम समूहों से यादृच्छिक रूप से नमूने निकाले जाते हैं। इन विषमांगी समूहों को क्लस्टर कहा जाता है। चयनित विषमांगी समूहों से संबंधित सभी वस्तुएँ नमूने का हिस्सा बन जाती हैं।
8) क्षेत्र प्रतिदर्शन (Area sampling)- यदि समूहों को भौगोलिक आधार पर विभाजित किया जाता है, तो इसे क्षेत्र नमूनाकरण कहा जाता है।
मल्टी-स्टेज प्रतिदर्शन - मल्टीस्टेज सैंपलिंग में, सैंपलिंग एक से अधिक चरणों या चरणों में की जाती है। पहले चरण में इकाइयों का चयन कुछ यादृच्छिक नमूनाकरण विधि द्वारा किया जाता है, आमतौर पर एसआरएसडब्ल्यूओआर या व्यवस्थित नमूनाकरण और दूसरे चरण में फिर से कुछ इकाइयों को कुछ उपयुक्त विधि के माध्यम से पहले से चयनित इकाइयों में से चुना जाता है। इसे क्लस्टर सैंपलिंग विधि के विस्तार के रूप में समझा जा सकता है, जहां पूरे विषम समूह का चयन करने के बजाय, नमूना बनाने के लिए प्रत्येक विषम समूह से वस्तुओं को यादृच्छिक रूप से निकाला जाता है।
उदाहरण के लिए, यदि हम किसी विशेष राज्य के परिवारों का एक नमूना प्राप्त करने में रुचि रखते हैं, तो पहले चरण की इकाइयाँ जिले हो सकती हैं, दूसरे चरण की इकाइयाँ जिलों के गाँव हो सकती हैं और तीसरे चरण की इकाइयाँ गाँवों में घर होंगी . इस प्रकार प्रत्येक चरण के परिणामस्वरूप नमूना आकार में कमी आती है।
गैर-यादृच्छिक या गैर-संभाव्यता प्रतिदर्शन (Non-Random Probability Sampling)
1) सुविधाजनक निदर्शन ((Convenience Sampling)
सुविधा निदर्शन में, एक शोधकर्ता केवल उन नमूना और नमूना इकाइयों का चयन करता है जो आसानी से उपलब्ध और सुलभ हैं। शोधकर्ता द्वारा कोई अतिरिक्त प्रयास नहीं किया जाता है क्योंकि वह केवल सुविधा के आधार पर नमूने चुनता है।
(2) कोटा प्रतिदर्शन (Quota Sampling) - कोटा नमूनाकरण एक प्रकार की गैर-संभाव्यता नमूनाकरण तकनीक है।कोटा नमूनाकरण को स्तरीकृत नमूने के एक विशेष रूप के रूप में देखा जा सकता है।
Stage 1 इस नमूनाकरण तकनीक में पूरी आबादी को सजातीय समूहों में विभाजित किया जाता है
Stage 2 फिर प्रत्येक समूह के लिए एक कोटा (नमूने के लिए चुनी जाने वाली वस्तुओं/उत्तरदाताओं की संख्या) तय किया जाता है। अर्थात अन्वेषक को पहले से ही बता दिया जाता है कि उसे सौंपे गए स्तर से नमूना इकाइयों की संख्या की जांच करनी है या गणना करनी है।
नमूनाकरण मे कोटा कुछ निर्दिष्ट विशेषताओं जैसे आय समूह, लिंग, व्यवसाय, राजनीतिक या धार्मिक संबद्धता आदि के अनुसार तय किया जा सकता है।
Stage 3 एक बार जब प्रत्येक समूह को कोटा आवंटित कर दिया जाता है तो सुविधा या निर्णय नमूने का उपयोग करके नमूना चुना जाता है।
अक्सर अन्वेषक नमूना इकाइयों का यादृच्छिक चयन नहीं करता है।
आमतौर पर नमूने के चुनाव में अपने निर्णय और विवेक का उपयोग करता है और जितनी जल्दी हो सके वांछित जानकारी प्राप्त करने का प्रयास करता है।
इसके अलावा, कुछ चयनित नमूना इकाइयों से प्रतिक्रिया न मिलने की स्थिति में (कुछ कारणों से जैसे कि अन्वेषक द्वारा बार-बार कॉल करने के बाद भी प्रतिवादी की अनुपलब्धता, या अपेक्षित जानकारी प्रस्तुत करने में मुखबिर की असमर्थता या इनकार), अन्वेषक अपना कोटा पूरा करने के लिए कुछ नई इकाइयों का चयन स्वयं करता है।
3) उदेश्यपूर्ण या सविचार या निर्णय प्रतिदर्शन (Judgement Sampling or purposive sampling)
जब शोधकर्ता जानबूझकर किसी विशेष उद्देश्य से अपने निर्णय के अनुसार समग्र में से अध्ययन हेतु कुछ इकाइयों का चुनाव करता है तो ऐसे विधि को उदेश्यपूर्ण या सविचार निदर्शन विधि कहते हैं। इस प्रकार की विधि में शोधकर्ता का निर्णय तथा उद्देश ही का प्रधान रहता है।
इस विधि में, नमूना इकाइयों का चयन शोधकर्ता द्वारा अपने निर्णय के आधार पर किया जाता है। शोध केवल उस नमूने का चयन करता है जो उनकी राय में अध्ययन के लिए सर्वोत्तम होगा।
4) स्नोबॉल नमूनाकरण (Snowball Sampling)
इस पद्धति में शोधकर्ता शुरू में अपने निर्णय के आधार पर एक नमूना इकाई (अध्ययन के आधार पर एक डॉक्टर, एक संगीतकार, एक कैंसर रोगी) का चयन करता है और फिर उनसे संदर्भ मांगता है। फिर पहली नमूना इकाई द्वारा दिए गए निर्देशों/सलाह/रेफ़रल के आधार पर आगे के नमूने लेना शुरू करता है और पुनः उनसे संदर्भ मांगता है और यह श्रृंखला तब तक जारी रहती है जब तक कि एक पर्याप्त नमूना नहीं बन जाता।
उपयोग - इस पद्धति का उपयोग उन मामलों में किया जाता है जहां अध्ययन की जाने वाली जनसंख्या दुर्लभ या छिपी हुई हो या उनकी गणना करना मुश्किल है।
5) स्व-चयनित/स्वयंसेवक नमूनाकरण
स्व-चयनित नमूनाकरण (या स्वयंसेवक नमूनाकरण) में प्रतिभागी को यह चुनने की अनुमति दी जाती है कि वे किसी शोध अध्ययन में भाग लेना चाहते हैं या नहीं। अर्थात यहां प्रतिभागी स्वयं शोध का हिस्सा बनने आते हैं। प्रतिभागियों को randomly ढंग से चुनने के बजाय, शोधकर्ता ऐसे व्यक्तियों को आमंत्रित करते हैं जो स्वेच्छा से अध्ययन में भाग लेने के लिए तैयार होते हैं। यह सुनिश्चित करता है कि केवल वे ही लोग आगे आएं जिनकी विषय में रुचि है।
उदा. ईमेल या सोशल मीडिया वेबसाइटों में ऑनलाइन सर्वेक्षण पूछा गया